अल्लाह ता'आला क़ुरान में फरमाता है.
ऐ ईमान वालो! रुकु और सज़्दा करते रहो और अपने रब की इबादत में लगे रहो और नेक काम करते रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ.
क़ुरान (सुरा हज 22/77)
हज़रत कैस बिन शैद रज़ी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है.
अल्लाह के रसूल सललाल्लाहू आलेही वासल्लम ने इरशाद फरमाया.
में एक शहर आया तो देखा के लोग अपने बादशाह के आगे सज़्दा करते है मेने सोचा अल्लाह के रसूल सल्ल. उन बादशाहो के मुकाबले में सज़्दे के ज़्यादा हकदार है,
में जब आप की खिदमत में हाजिर हुआ अपनी बात बयान की आप ने मुझसे सवाल किया मुझे ये बताओ तुम मेरी क़ब्र के पास से गुज़रो तो क्या उसे सज़्दा करोगे ?
मेने जवाब दिया के नही उस पर आप ने फरमाया फिर मुझे भी सज़्दा ना करो.
हदीस (अबू दाऊद : 2130)
अल्लाह के रसूल सललाल्लाहू आलेही वासल्लम ने इरशाद फरमाया.
खबरदार! तुमसे पहले के लोगो ने अपने नबियो और नेक लोगो की क़बरो को सज़्दा गाह बना लिया था.
सुन लो ! तुम क़बरो को सज़्दा गाह ना बनाना में तुम्हे इससे माना करता हूँ.
हदीस (सहीह : मुस्लिम : 523)
मालूम हुआ के अल्लाह के अलावा किसी के लिए भी सज़्दा करना जाइज़ नही.
ताज़िमी सज़्दा भी नही शारयते मुहम्मदिया में इसे भी हराम करार दिया गया है.
ताज़ीम की वजह से सज़्दा करे तो कबीरा (बड़ा) गुनाह है, और अगर किसी को इबादत की वजह से करे तो शिर्के अकबर (अल्लाह के साथ मिलना) है.
अल्लाह हमे हक़ बात समझने की तोफीक अता फरमाये
अमीन...
ऐ ईमान वालो! रुकु और सज़्दा करते रहो और अपने रब की इबादत में लगे रहो और नेक काम करते रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ.
क़ुरान (सुरा हज 22/77)
हज़रत कैस बिन शैद रज़ी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है.
अल्लाह के रसूल सललाल्लाहू आलेही वासल्लम ने इरशाद फरमाया.
में एक शहर आया तो देखा के लोग अपने बादशाह के आगे सज़्दा करते है मेने सोचा अल्लाह के रसूल सल्ल. उन बादशाहो के मुकाबले में सज़्दे के ज़्यादा हकदार है,
में जब आप की खिदमत में हाजिर हुआ अपनी बात बयान की आप ने मुझसे सवाल किया मुझे ये बताओ तुम मेरी क़ब्र के पास से गुज़रो तो क्या उसे सज़्दा करोगे ?
मेने जवाब दिया के नही उस पर आप ने फरमाया फिर मुझे भी सज़्दा ना करो.
हदीस (अबू दाऊद : 2130)
अल्लाह के रसूल सललाल्लाहू आलेही वासल्लम ने इरशाद फरमाया.
खबरदार! तुमसे पहले के लोगो ने अपने नबियो और नेक लोगो की क़बरो को सज़्दा गाह बना लिया था.
सुन लो ! तुम क़बरो को सज़्दा गाह ना बनाना में तुम्हे इससे माना करता हूँ.
हदीस (सहीह : मुस्लिम : 523)
मालूम हुआ के अल्लाह के अलावा किसी के लिए भी सज़्दा करना जाइज़ नही.
ताज़िमी सज़्दा भी नही शारयते मुहम्मदिया में इसे भी हराम करार दिया गया है.
ताज़ीम की वजह से सज़्दा करे तो कबीरा (बड़ा) गुनाह है, और अगर किसी को इबादत की वजह से करे तो शिर्के अकबर (अल्लाह के साथ मिलना) है.
अल्लाह हमे हक़ बात समझने की तोफीक अता फरमाये
अमीन...