दुआ (सिर्फ़ अल्लाह ही से) की जाये

हर मुस्लमान ये मानता है अल्लाह की मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नही हिल सकता है.
हर मुसलमान ये मानता है बिलासुबा अल्लाह हमारी दिलों की बाते भी जनता है.
तो फिर दुआ भी सिर्फ़ अल्लाह ही से करनी चाहिए.


 क़ुरान में अल्लाह फरमाता है

तुम अल्लाह ही को पुकारो उसके लिए दिन को खालिश करके.
क़ुरान (सुरा मोमिन 40/14)

बिलासुबा मस्जिद सिर्फ़ अल्लाह ता'आला की है इस लिए तुम अल्लाह के साथ किसी और को मत पुकारो.
क़ुरान (सुरा जिन्न 72/18)

और उस से बढ़कर गुमराह कोन होगा जो अल्लाह के सिवा ऐसो को पुकारता है जो कयामत तक उस की दुआ काबुल ना कर सके, बल्कि रोज़े कयामत इनके पुकाराने का साफ इन्कार कर देगे.
क़ुरान (सुरा अहकाफ़ 46/5-6)

और जो भी अल्लाह के साथ दूसरो को पुकारता है उस के पास उसकी कोई दलील भी नही बेशक उस का हिसाब उसके रब के पास है.
क़ुरान (सुरा मोमेनून 23/117)

तुम लोग अपने परवरदिगार से दुआ किया करो गिड गिडाकार और चुपके चुपके.
क़ुरान (सुरा आराफ़ 7/55)

तमाम अंबिया अले., सॉहाबा राज़ी. नेक सालेह लोग, हमारे बुज़ुर्ग, वली ये सब अल्लाह ही को पुकारते थे.
उन्होने हमको भी यही सिखाया है (अल्लाह के अलावा किसी और को पुकारना शिर्क है) और ये ज़मीन और आसमान सारी कायनात में सबसे बड़ा गुनाह है.


अल्लाह हमे हक़ बात समझने की तोफीक अता फरमाये
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